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किसी पर विश्वास मत करो

किसी पर विश्वास मत करो   एक बार एक व्यापारी, अपने ऊँट के साथ जंगल से गुजर रहा था। उसने ऊंट को जंगल में छोड़ दिया, चूंकि यह बीमार था और खुद ही अपनी यात्रा जारी रखी। इसने जंगल में जो कुछ भी उपलब्ध था, खा लिया। जल्द ही ठीक हो गया, और खुश था। शेर, लोमड़ी और कौआ, उसी जंगल में एकता में रह रहे थे। उन्हें ऊंट के बारे में पता चला और उन्होंने उससे पूछताछ की। ऊंट ने घटना बताई, और चारों अच्छे दोस्त बन गए। एक दिन, जब शेर ने एक हाथी का शिकार किया, यह बहुत बुरी तरह से आहत हो गया। इसलिए, वह अपनी मांद के अंदर ही रहा और बाहर नहीं आ सका। इसलिए, शेर शिकार करने बाहर नहीं जा सकता था। दूसरे जानवर शिकार नहीं कर सकते थे, और वे सभी भूखे रह गए। शेर ने लोमड़ी, कौआ और ऊंट को बुलाया। “Mr.Fox, मुझे बहुत भूख लगी है,” “इस दिशा में जाओ और मुझे कुछ खाने को दो”। “Mr.Crow, आप दूसरी दिशा में जाएं” “मि। मिसेल, आप विपरीत दिशा में जाते हैं, और कुछ मिलता है। ” आप तीनों, भोजन करके लौट आएं। ठीक है, अब आप जा सकते हैं। तीनों अलग-अलग दिशाओं में गए, कुछ खाने को नहीं मिला।  वे फिर से एक साथ मिले, और एक निर्णय लिया। तदनुसार, वे शेर के
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आधी रोटी

 आधी रोटी कालू कौआ बहुत भूखा था। उसने इधर-उधर देखा। सामने एक लड़की रोटी खाने के लिए बैठी थी। उसने रोटी सामने रखी। अपनी सहेली को आवाज दी।  जैसे ही उसने पीछे मुंह घुमाया, वैसे ही कालू कौए ने रोटी झपट ली। वह तेजी से उड़ा और पेड़ पर बैठ गया। यह देखकर लड़की रोने लगी। वह उठकर कौए के पीछे भागी। पत्थर उठाया। कालू को दे मारा। कालू तुरंत उड़ा। दूसरे पेड़ पर जाकर बैठ गया। जिस पेड़ पर कालू बैठा था, उसी पेड़ के नीचे पूसी बिल्ली बैठी थी। उसने कालू कौए के मंुह में रोटी देख ली थी। इसलिए बोली, “कालू भाई, कालू भाई! आज अपना प्यारा राग नहीं सुनाओगे?” आवाज सुनकर कालू ने पूसी की ओर देखा। वह उसी की ओर देखकर बोल रही थी। मगर कालू चुप रहा। वह बोलता, तो रोटी मुंह से छूट जाती। “क्या गाना गाना भूल गए कालू भाई?” पूसी ने पूंछ उठाकर बड़े प्यार से पूछा। कालू फिर भी चुप रहा। वह कुछ नहीं बोला। पूसी बिल्ली ने दोबारा कहा, “क्या मेरी इच्छा पूरी नहीं करोगे?” मगर कालू चुप ही रहा। “अरे, काले कलूटे! बोलता क्यों नहीं है? मैं तो बड़े प्यार से बोल रही हूं। इधर तू है कि अपने कालेपन पर इतरा रहा है।” पूसी  चिल्लाई। कालू कौआ पूसी की

ठाकुर जी और मैं

 ठाकुर जी और  मैं ठाकुर जी एक कटोरे में मिट्टी लेकर उससे खेल रहे थे। मैंने पूछा :- गोपाल जी ये क्या कर रहे हो ? ठाकुर जी कहने लगे :- मूर्ति बना रहा हूँ। मैंने पूछा :- किसकी ? उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा। और कहने लगे :- एक अपनी और एक तुम्हारी। मैं भी देखने के उद्देश्य से उनके पास बैठ गया। अब ठाकुर जी ने कुछ ही पल में दोनों मूर्तियाँ तैयार कर दी।और मुझसे पूछने लगे :- बताओं कैसी बनी है ? मूर्ति इतनी सुंदर मानों अभी बोल पड़ेंगी।परन्तु मैंने कहा:- मजा नहीं आया।इन्हें तोड़ कर दुबारा बनाओ। अब ठाकुर जी अचरज भरी निगाहों से मेरी ओर देखने लगें।और सोचने लगे कि मेरे बनाए में इसे दोष दिखाई दे रहा हैं। परन्तु उन्होंने कुछ नहीं कहा।और दोबारा उन मूर्तियों को तोड़कर उस कटोरे में डाल दिया।और उस मिट्टी को गुथने लगें। अब उन्होंने फिर से मूर्तियाँ बनानी शुरू की।और हुबहू पहले जैसी मूर्तियाँ तैयार की। अबकी बार प्रश्न चिन्ह वाली दृष्टि से मेरी ओर देखा ? मैंने कहा:- ये वाली पहले वाली से अधिक सुंदर है। ठाकुर जी बोले :- तुम्हें कोई कला की समझ वमझ हैं भी के नहीं।इसमें और पहले वाली में मैंने रति भर भी फर्क

जल की मिठास

जल की मिठास   एक शिष्य अपने गुरु से सप्ताह भर की छुट्टी लेकर अपने गांव जा रहा था। तब गांव पैदल ही जाना पड़ता था। जाते समय रास्ते में उसे एक कुआं दिखाई दिया। शिष्य प्यासा था, इसलिए उसने कुएं से पानी निकाला और अपना गला तर किया। शिष्य को अद्भुत तृप्ति मिली, क्योंकि कुएं का जल बेहद मीठा और ठंडा था।  शिष्य ने सोचा - क्यों ना यहां का जल गुरुजी के लिए भी ले चलूं। उसने अपनी मशक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा। वह आश्रम पहुंचा और गुरुजी को सारी बात बताई। गुरुजी ने शिष्य से मशक लेकर जल पिया और संतुष्टि महसूस की। उन्होंने शिष्य से कहा- वाकई जल तो गंगाजल के समान है। शिष्य को खुशी हुई। गुरुजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्य आज्ञा लेकर अपने गांव चला गया।  कुछ ही देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्य गुरुजी के पास पहुंचा और उसने भी वह जल पीने की इच्छा जताई। गुरुजी ने मशक शिष्य को दी। शिष्य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्ला कर दिया। शिष्य बोला- गुरुजी इस पानी में तो कड़वापन है और न ही यह जल शीतल है। आपने बेकार ही उस शिष्य की इतनी प्रशंसा की।  गुरुजी बोले- बेटा, मिठास और शीतलता इस जल में

वर्चुअल दुनिया से बाहर

 वर्चुअल दुनिया से बाहर साहिल स्कूल से आते ही मम्मी का मोबाइल लेकर गेम खेलना शुरू कर देेता या सोशल साइट्स पर चैटिंग करने लगता। एक बार वह खेलने बैठता, तो घंटों तक खेलता ही रहता। उसे न होमवर्क की चिंता रहती और न ही खाने की। फुटबॉल खेलना, गिटार बजाना और मोबाइल पर गेम खेलना उसकी  हॉबी थी। पर अब वह सब कुछ भूलकर सुबह से लेकर शाम तक बस मोबाइल पर ही खेलता रहता। मम्मी-पापा दोनों के मना करने के बावजूद साहिल नहीं मानता। अपनी इस आदत की वजह से वह पढ़ाई में भी पिछड़ता जा रहा था। फिजिकल एक्टिविटी न होने से उसका वजन भी लगातार बढ़ता जा रहा था। मम्मी चाहती थीं कि साहिल खेलने के साथ-साथ पढ़ाई और अपनी हेल्थ पर भी ध्यान दे। पर साहिल उनकी कोई बात मानने को तैयार ही नहीं था। मम्मी अब उसे समझाने के लिए कोई और तरीका सोच रही थीं। परीक्षा खत्म हो चुकी थी। इस बार छुट्टियों में मम्मी-पापा साहिल को लेकर गांव जाने की योजना बना रहे थे। दरअसल मम्मी चाहती थीं कि साहिल इस बार छुट्टियां दादाजी के साथ बिताए। उनके साथ गांव घूमे। उनसे अच्छी आदतें सीखे और जैसे वे फिट रहते हैं, वैसे ही साहिल भी रहे।  छुट्टियों में साहिल भी मम्

जो होता है अच्छा होता है

 जो होता है अच्छा होता है एक बार अख़बर और बीरबल शिकार पे जा रहे होते हैं। और अख़बर का अंगूठा कट जाता है। तलवार निकालते वक़्त…वो वॉखला जाता। चीखने-चिल्लाने-लग जाता हैं कहता-हैं सिपाहियों जल्दी जाओ-जाकर वेद को बुलाकर लाओ देखो मेरा अँगूठा कट गया है! देखो मेरी क्या हालत हो गयी। उधर से बीरबल आता है। हँसता हुआ,बोला- महाराज जो होता हैं। अच्छे के लिए होता है। अख़बर-बीरबल तू क्या पागल हो गया है, मैं तुझे अपना समझता था और तू कैसी बेकार बातें कर रहा है। अख़बर- एक काम करो सिपाहियों वेद को छोड़ो पहले इस बीरबल को ले जाओ ले जाकर के इसे उल्टा लटका दो पूरी रात के लिए और इसको कोड़े मारते रहना… और सुबह-सुबह इसको फाँसी दे देना। सिपाही ले जाते हैं। बीरबल को…..उधर से अख़बर शिकार पे अकेला चला जाता है। अख़बर को कुछ आदिवासी पकड़ के ले जाते हैं।और उल्टा कर के लटका देते हैं। अब वहाँ आदिवासीयो का डांस चल रहा हैं। इतने में एक आदिवासी की नज़र पड़ती हैं! अख़बर के कटे हुए अंगूठे की तरफ़। आदिवासी-अरे ये तो आसुद हैं। हम इसकी वली नहीं चढ़ा सकते छोड़ दो इससे अख़बर को छोड़ दिया जाता हैं। अब अख़बर रो रहा है सुबह का टाइम हो

फ़ालतू का ज्ञान

 फ़ालतू का ज्ञान एक बार की बात है एक जंगल में बुलबुल नाम की चिड़िया रहती थीं, ठंड का मौसम आने वाला था सभी जानवर उससे बचने के लिए तैयारी करने लगे। बुलबुल ने भी एक शानदार घोसला बनाया और आने वाली बारिश से बचने के लिए उसे चारो तरफ से घास से ढक दिया।औ एक दिन अचानक बहुत घनघोर वर्षा शुरू हो गई जिससे बचने के लिए सभी जानवर इधर उधर भागने लगे, बुलबुल आराम से अपने घोसले में बैठ गई। तभी एक बंदर खुद को बचाने के लिए उस पेड़ के नीचे आ पहुंचा। बंदर की हालत देख बुलबुल ने कहा- तुम इतने होशियार बने फिरते हो फिर भी बारिश से बचने के लिए घर नहीं बनाया। ये सुनकर बंदर को बहुत गुस्सा आया पर वह चुप रहा। बुलबुल फिर बोली पूरी गर्मी आलस में बिता दी अच्छा होता अपने लिए घर बना लेते। बंदर ने अपने गुस्से को काबू किया और चुप रहा। वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी और हवाएं और तेज हो रहीं थी, बेचारा बंदर ठंड से कापने लगा, पर बुलबुल ने तो मानो कसम खा रखी थी उसे छेड़ने की। बह फिर बोली तुमने थोड़ी अक्ल दिखाई होती तो इस हालत… बुलबुल ने अपनी बात खतम भी नहीं की थी के बंदर पेड़ पर चढ़ गया और बोला- भले मुझे अपना घर बनाना नहीं आता

राजकुमार और सोना

 राजकुमार और सोना बहुत पहले, एक जंगल में एक जादूगरनी रहती थी। उसकी, सोना नाम की एक बहुत सुंदर भतीजी थी। एक बार उस राज्य का राजकुमार वहाँ आया और सोना से मिला। दोनों एक दूसरे को पसन्द करने लगे। राजकुमार ने कहा- "मैं अपने माता-पिता को तुम्हारे बारे में बताऊँगा। फिर मैं तुमको उनके पास लेकर जाऊँगा।" सोना ने कहा-"तुम अपनी बहन को मत छूना, नहीं तो एक जादू के प्रभाव से तुम मुझे भूल जाओगे।" राजकुमार, सोना की चेतावनी को भूल गया। उसने अपनी बहन का हाथ छू लिया और वह सोना को भूल गया। राजा ने राजकुमार के लिए एक राजकुमारी को चुन लिया और विवाह की तैयारी शुरु कर दी। जब सोना को यह पता चला तो उसने महल में एक केक भेजा। जब केक काटा गया तो दो चिड़ियाँ वहाँ आई। एक चिड़िया ने दूसरी से कहा-"केक मत खाना वरना तुम मुझे वैसे ही भूल जाओगे जैसे राजकुमार सोना को भूल गया।" इतना सुनते ही राजकुमार को सोना की याद आ गई। वह राजा के साथ जंगल में गया और सोना से मिला। राजा दोनों को महल में ले आये और उन दोनों का विवाह कर दिया।

आप से बढ़कर कुछ नहीं

  आप से बढ़कर कुछ नहीं एक बार कि बात है- एक आदमी कही से गुज़र रहा था,तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा के उनके अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई हैं। उसे इस बात का बड़ा आश्चर्य हुआ के हाथी जैसे ताक़तवर जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं। उसने पास खड़े एक किसान से पूछा, के भला ये हाथी किस तरह इतनी शांति से खड़े हैं और भागने की कोसिस क्यो नहीं कर रहे? किसान बोला- इन हाथियों को छोटे पन से ही ये रस्सियों से बांधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती हैं के इस बंधन को वो तोड़ सके। बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी न तोड़ पाने की वजह से उन्हें धीरे-धीरे ये यक़ीन हो जाता हैं के वो इन रस्सियों को नहीं तोड़ सकते, और बड़े होने पर भी इनका ये यकीन बना रहता है! इसलिए वो कभी इन्हें तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते। वह आदमी आश्चर्य में पड़ गया, के ये जानवर इसलिए रस्सी नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात पर यकीन करते हैं, के वो ऐसा नहीं कर सकते। इन हाथियों की तरह ही हम में से कई लोग पहली बार मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं के अब हमसे ये काम नहीं हो सकता। और अपनी ही बनाई हु

रेलगाड़ी

  रेलगाड़ी पिंकी बहुत प्यारी लड़की है। पिंकी कक्षा दूसरी में पढ़ती है। एक दिन उसने अपनी किताब में रेलगाड़ी देखी।  उसे अपनी रेल – यात्रा याद आ गई , जो कुछ दिन पहले पापा – मम्मी के साथ की थी। पिंकी ने चौक उठाई और फिर क्या था , दीवार पर रेलगाड़ी का इंजन बना दिया। उसमें पहला डब्बा जुड़ गया , दूसरा डब्बा जुड़ गया , जुड़ते – जुड़ते कई सारे डिब्बे जुड़ गए। जब चौक खत्म हो गया पिंकी उठी उसने देखा कक्षा के आधी दीवार पर रेलगाड़ी बन चुकी थी। फिर क्या हुआ  – रेलगाड़ी दिल्ली गई  ,  मुंबई गई   ,   अमेरिका गई  ,  नानी के घर गई ,  और दादाजी के घर भी गई।    नैतिक शिक्षा – बच्चों के मनोबल को बढ़ाइए कल के भविष्य का निर्माण आज से होने दे। Moral of this short hindi story – Boost confidence of children because they are future

मुर्गा की अकल ठिकाने

  मुर्गा की अकल ठिकाने एक समय की बात है , एक गांव में ढेर सारे मुर्गे रहते थे। गांव के बच्चे ने किसी एक मुर्गे को तंग कर दिया था। मुर्गा परेशान हो गया , उसने सोचा अगले दिन सुबह मैं आवाज नहीं करूंगा। सब सोते रहेंगे तब मेरी अहमियत सबको समझ में आएगी , और मुझे तंग नहीं करेंगे। मुर्गा अगली सुबह कुछ नहीं बोला।  सभी लोग समय पर उठ कर अपने-अपने काम में लग गए इस पर मुर्गे को समझ में आ गया कि किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता। सबका काम चलता रहता है। नैतिक शिक्षा – घमंड नहीं करना चाहिए। आपकी अहमियत लोगो को बिना बताये पता चलता है। Moral of this short hindi story – Never be too arrogant. Your work should tell your importance to the world.